" लाये है तूफान से, किश्ती निकाल के "
नरेन्द्र अग्रवाल, प्रधान संपादक
आधुनिक
टेक्नोलॉजी के युग में जब विश्व सिमटकर इंटरनेट पर खड़ा है। मनुष्य की जिज्ञासा एवं अभिलाषा अधिक से
अधिक जानने की है। विश्व भारत की क्षमताओं एवं इतिहास को जानने को उत्सुक है। सबसे
बड़ा लोकतंत्र, सबसे
पुरातन देश, पुरातन
संस्कृति, सबसे
अधिक युवाओं का देश, इसकी लोकतान्त्रिक धरोहर को जानने समझने की जिज्ञासा प्रेरित
करती है कि, इस
देश के लोकतांत्रिक इतिहास को जाना जाए। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में आपातकाल का
काला अध्याय जिज्ञासुओं की जानकारी के लिए उपलब्ध रहे इस हेतु यह विनम्र प्रयास
है।
भारत में लोकतंत्र यदि
सुरक्षित है, तो
इसके लिए तपोनिष्ठ बहुतेरे बलिदानियों की एक श्रृंखला है। जिसमें कुछ तो तत्समय
(आपातकाल में) काल कवलित हो गए तथा कुछ उम्र के प्रवाह में बिछुड़ गए। कुछ
आपातकालीन अत्याचारों के बोझ को ढोतेहुए होते हुए बीमारी एवं आर्थिक तंगी से
संघर्ष करते हुए परलोक सिधार गए। कुछ संघर्षशील तपोनिष्ठ
समाजसेवी जिन्होंने आपातकाल की यातनाओं को सहकर भी अपने मनोबल एवं तपोबल से
प्रेरणा देकर, देश और समाज को लोकतंत्र की अक्षुणता बनाए रखने का बीड़ा उठाया है।
ऐसे समस्त तपोनिष्ठ लोकतंत्र सेनानी, हमारा मार्गदर्शन कर हमारे प्रेरक बने हुए
हैं। ऐसे समस्त ज्ञात-अज्ञात प्रजातंत्र रक्षकों, लोकतंत्र सेनानियों के
चरणो में विनम्र आदरांजली अर्पित करते हुए, उनकी स्मृतियों, अनुभवों, संघर्षों, अत्याचार की पीड़ा का
चित्रण, उनकी अपनी बात इस वेबपोर्टल के माध्यम से साझा करने का प्रयास मात्र है।
लोकतंत्र
सेनानियों (मीसाबंदी) के पीड़ित परिवार, जिनका सामाजिक आर्थिक
ढांचा बिगड़कर परिवार छिन्न-भिन्न और तहस-नहस हो गए, उनकी पीड़ा को शब्द
देने का प्रयास है। उनकी जीवन गाथा एवं प्रेरणादाई संघर्ष हमें आपातकाल के
उन 21 माह (26 जून 1975 से 21 मार्च 1977) की पृष्ठभूमि का वर्णन करा सकें यह हमारा उद्देश्य है।
इतिहास बदला नहीं जा
सकता, इतिहास
से सबक लिया जा सकता है। विश्व इतिहास में नाजी अत्याचारों, मध्ययुगीन बर्बरता एवं
इसी प्रकार के काले पृष्ठों को जब खोला जाएगा, तब आपातकालीन
अत्याचारों एवं बर्बरता का काला पृष्ठ एवं इससे निकले भारतीय लोकतंत्र की गौरवगाथा, जनमानस को संतुष्टि
प्रदान करेगी।
आपातकाल के समय मेरी
आयु मात्र 3 वर्ष
की थी। मेरे दादाजी स्वर्गीय श्री हजारीलाल जी अग्रवाल को 25
- 26 जून
की मध्यरात्रि में ही गिरफ्तार किया गया वे जनसंघ के प्रमुख नेता थे। मेरे पिताजी
श्री सुरेंद्र जी अग्रवाल को भारतीय युवा संघ (जनसंघ का युवा संगठन) का प्रधान
सचिव होने के नाते गिरफ्तार किया गया। मैं एक अबोध बालक के रूप में घटनाक्रम को
समझने में असमर्थ था। किंतु दुःखी था। दुःख की स्मृतियां
मेरे मानस पटल पर अब भी मौजूद हैं।
मैं
आभारी हूं उन लोकतंत्र सेनानी का, जिन्होंने ने मुझे यह कार्य हाथ में लेने की प्रेरणा दी। जिसमें प्रमुख रुप से
माननीय शिवराजसिंह जी चौहान, श्री मेघराज जैन (सांसद), श्री कैलाश सोनी
(सांसद), श्री संतोष शर्मा, श्री तपन भौमिक, मेरे पिताजी श्री सुरेन्द्र अग्रवाल जिन्होंने जानकारियों के साथ
पूर्ण सहयोग देकर मेरा हौसला बढ़ाया और इतने बड़े कार्य का दायित्व सौंपकर मुझे उपकृत
किया।
मेरे
दादाजी स्वर्गीय श्री हजारीलाल जी अग्रवाल, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, एवं लोकतंत्र सेनानी
रहे है। अपनी किशोरावस्था में स्वातंत्र्य वीर सावरकर, डॉ. हेडगेवार जी, डॉ. मुंजे एवं परम
पूजनीय श्री गुरुजी के संपर्क में रहे है। आजादी से पूर्व कांग्रेस के कार्यकर्ता,
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, आर्य कुमार सभा के सदस्य, संघ के स्वयंसेवक एवं
पत्रकार रहे। उन्हें दीनदयाल जी उपाध्याय, अटल बिहारी
वाजपेयीजी, महाशय कृष्ण, भगवतीधर वाजपेयी, मामा माणकचंद जी, कृष्णकुमार अष्ठाना जी
जैसे महापुरुषों एवं मूर्धन्य पत्रकारों के सानिध्य में पत्रकारिता करने का अवसर
मिला। मेरे पिताजी श्री सुरेन्द्र अग्रवाल जी बचपन से संघ के स्वयंसेवक, पदाधिकारी, छात्र नेता, सामाजिक
कार्यकर्ता एवं मीसाबंदी
रहें है। आपातकाल के समय युवासंघ के प्रधान सचिव, जनसंघ
के कार्यकर्ता, जे.पी. आन्दोलन के प्रमुख नेता रहे। आपातकाल के बाद जनता पार्टी
तथा भारतीय जनता पार्टी के जिला महामंत्री सहित अनेक पदों पर रहे। मुझे स्व. कुशाभाऊ ठाकरे जी,
स्व. प्यारेलाल जी खंडेलवाल एवं संघ के तपोनिष्ठ प्रचारकों का बचपन से सानिध्य
प्राप्त होता रहा है। यह उसी का प्रतिफल है कि आप सभी से परिवार जनों की भांति
संवादित हूँ। इस आशा और विश्वास के साथ कि आप अपना श्रेष्ठ अवदान देकर ऐतिहासिक
घटनाक्रम को साझा करेंगे।
विनम्र
अनुरोध है कि, यदि
आपके पास महत्वपूर्ण जानकारियां, फोटोग्राफ, ऑडियो-वीडियो, संस्मरण आदि हैं, तो कृपया हमसे साझा कर
इस पुनीत कार्य को संबल प्रदान करें।