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लोकतंत्र सेनानी


Name :
OMPRAKASH SHARMA

नाम :
N/A श्री ओम प्रकाश शर्मा

N/A
श्री ध्यानचंद शर्मा

लिंग :
पुरूष

राज्य :
Punjab

जिला :
Fazilka

जन्म
04-02-1942

आवेदन दिनांक :
06-09-2016

मोबाइल :
9872487387

आवेदक का नाम :
स्वयं

डाक का पता:
सतलुज मार्ट,सदर बाजारगली न0-12, अबोहर जिला फज़िल्का पंजाब

निरुद्ध जेल का नाम
फिरोजपुर सेंट्रल जेल

जेल अवधि
10 जुलाई 1975 से 10 सितम्बर 1975

गिरफ्तारी अंतर्गत
151ANYA

वर्तमान ज़िम्मेदारी
भाजपा प्रांतीय कार्यकारिणी सदस्य, पंजाब, प्रदेश अध्यक्ष, लोकतंत्र सेनानी संघ, पंजाब

जीवित या स्वर्गीय
living

सामाजिक दायित्व
प्रांतीय महामंत्री, भारतीय जनसंघ (युवा), मंडल अध्यक्ष, भारतीय जनसंघ, जिला अध्यक्ष, भाजपा, फिरोजपुर, सचिव, पंजाब भाजपा, नगर पालिका में पार्षद

संस्मरण:
*देश के लिए संघर्ष का ऐसा मौका फिर कहाँ* *अखंड भारत से खंडित भारत में प्रवेश* हमारा परिवार 1947 से पहले अखंड भारत के पाकपंटन तहसील के कुभ्मरी गाँव (आजकल पाकिस्थान) में रहता था । 5 साल की छोटी उम्र में ही माता, पिता, भाई-बहन सहित 6 पारिवारिक लोगों को खोना पड़ा । उनके साथ हमारे गाँव के लगभग 60 लोगों ने हिन्दूधर्म त्यागने के बदले अपनी क़ुर्बानियाँ दे दीं । उस मर्मांतिक घटना के साथ ही नीयति ने जीवन में संघर्षों की शुरुआत कर दी थी । हिंदुस्तान में आते ही जब हम बेसहारा थे मैंने सघं के स्वयंसेवकों के साथ मिलकर अपनी पीड़ा भूलने की कोशिश कर रहा था । हमारे परिवार के बचे हुए लोग , तब भारत आने वाले लोगों की जिस प्रकार सेवा कर रहे थे, वह संस्कार मेरे अंदर गहरे तक समा रहा था । कोई भी कठिनाई आए, तब देश की आज़ादी की उमंग जोश भर देती थी। यौवन की दहलीज तक आते-आते रा.स्व.संघ के प्रचारकों द्वारा महापुरुषों के प्रेरक प्रसंग सुन कर राष्ट्रीयता की भावना और गहरी होती गई । इसी समय मेरी प्रथम वर्ष ओ.टी.सी. भी हुई । राष्ट्र की सेवा का जज्बा ऐसा जगा कि मिलेट्री की EME ब्रांच में 6 साल तक नौकरी की । परंतु स्थायित्व न मिलने के कारण मोह भंग हुआ । मैं नौकरी छोड़ कर घर आ गया । पारिवारिक परिस्थितियों के विपरीत होने के कारण कई बार विकट स्थितियों का सामना करना पड़ा । फिर भी आंदोलन, चाहे गोहत्या पर पाबन्दी का हो या महापंजाब का या बाद में राम जन्मभूमि आंदोलन सब में जनसंघ और भाजपा के कार्यकर्ता के रूप में बढ़चढ़ कर भाग लिया । *धरपकड़ से बचकर भूमिगत तैयारियाँ* इमरजेंसी की घोषणा के साथ ही संविधान द्वारा दिए गए मुलभूत अधिकारों पर ग्रहण लग गया । सारे देश में आर.एस.एस. और जनसंघ के कार्यकर्ताओं की धरपकड़ शुरू हो गई । अबोहर में संघ तथा राजनीतिक कार्यकर्ताओं के घरों और दूकानों/प्रतिष्ठानों पर छापे मारे जाने लगे । हम क्योंकि राजनीति के कारण धरना, प्रदर्शनों में आगे रहते थे, इसलिए मेरे घर व दूकान पर भी पुलिस की दबिश होने लगी । ऐसी स्थिति में, मैं और मेरे साथी कभी श्मशान में, कभी किसी मंदिर या धर्मशाला में रात्रि को गुपचुप तरीके से मिलते थे और भूमिगत कार्यों की योजना बनाते थे । एक बार रात को मैं जैसे ही घर में पहुँचा, दूसरे ही क्षण दरवाजा खटखटाने की आवाज आई । मेरी धर्मपत्नी दरवाजे की तरफ बढ़ी और मैं सतर्क हो गया । बाहर पुलिस के सिपाही थे । मेरी धर्मपत्नी ने मुझे सतर्क करने के लिए उनसे ऊँची आवाज में बात करनी शुरू कर दी । मैं समझ गया और पिछले गेट से निकल गया । मेरी धर्मपत्नी की सूझबूझ से मैं बच गया । दो दिन बाद मैं अपनी दूकान के सामने वाले शो रूम में बैठा था और अचानक पुलिस आ गई । मेरी दूकान पर कोई नहीं था, सो उन्होंने सामने वाले शो रूम पर आ कर मुझसे ही मेरे बारे में पूछने लगे । मैंने उन्हें बताया की वे अभी-अभी राजस्थान जाने के लिए कह कर गए हैं । पुलिस वाले शायद नए थे जो मुझे पहचानते नहीं थे । मैं और मेरे साथियों के पकड़ में न आने से वे घर और दूकान पर बार-बार आने लगे । हममें से बहुतों की रिश्तेदारी लोकल अबोहर में होने के कारण रिश्तेदारों पर भी हमें पेश करने का दबाव बनाया गया । उपर से उन्हें जेल का भय भी दिखाया गया । *देश सेवा का ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलता* जब सत्याग्रह का निर्देश आया, मैं और मेरे साथियों ने रात्रि बैठक में 2-2 लोगों के ग्रुप में सत्याग्रह करने की योजना बनाई और सभी भूमिगत हो गए । हमें 10 जुलाई को सत्याग्रह करके गिरफ्तार होने का आदेश मिला । परिवार में कमाने वाला सिर्फ मैं था । बच्चे छोटे छोटे थे । इसलिए मन थोड़ा कमजोर हो रहा था । परंतु मन में एक विचार स्पष्ट था कि

स्मृतियाँ:

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