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लोकतंत्र सेनानी


Name :
RAJNIKANT ACHARYA

नाम :
N/A श्री रजनीकांत आचर्य

N/A
श्री नन्द कुमार आचार्य

लिंग :
पुरूष

राज्य :
Rajasthan

जिला :
Bhilwara

जन्म
02-06-1955

आवेदन दिनांक :
18-11-2016

ई मेल पता:
acharyark47@gmail.com

मोबाइल :
9414687015

अन्य नम्बर:
01482221816

आवेदक का नाम :
स्वयं

डाक का पता:
2 - R - 14 , आर.सी. व्यास कॉलोनी, भीलवाड़ाजिला भीलवाड़ा

निरुद्ध जेल का नाम
जिला कारागृह भीलवाड़ा एवं सेण्ट्रल जेल जयपुर

जेल अवधि
14-11-1975 से 09-03-1976

गिरफ्तारी अंतर्गत
DIR

वर्तमान ज़िम्मेदारी
संरक्षक - भारत विकास परिषद शाखा भीलवाड़ा, सचिव एवं जिला संयोजक - लोकतंत्र रक्षा मंच शाखा भीलवाड़ा, संगठन सचिव - वरिष्ठ नागरिक मंच (संस्थान) भीलवाड़ा

जीवित या स्वर्गीय
living

सामाजिक दायित्व
जिला संगठन मंत्री ABVP भीलवाड़ा, आरएसएस मुख्य शिक्षक एवं कार्यवाह, सचिव - भारत विकास परिषद शाखा भीलवाड़ा

संस्मरण:
1975 में मैं बी.कॉम. अन्तिम वर्ष का छात्र एवं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का जिला संगठन मंत्री था। आपातकाल लगने के बाद पूरे देश में 14 नवम्बर 1975 से आंदोलन की योजना बनी। बडे भाई सा. की सरकारी सेवा हमारे निवास से दूर थी। पिताजी गांधीवादी विचारधारा से थे एवं सर्वोदयी कार्यकर्ता थे परिवार में मेरा स्थान भाई सा. के बाद दूसरे नम्बर था मेरे बाद तीन छोटे-छोटे भाई एवं बहन थी। जय प्रकाश नारायण के आव्वाह्न पर पिताजी ने अपने सर्वोदयी साथियों के साथ प्रथम दिन ही प्रातः गिरफ्तारी देने का कार्यक्रम बना रखा था इससे पूर्व भी पिताजी पांच बार मद्य निषेध नशा बंदी कार्यक्रमो में जोधपुर अजमेर एवं जयपुर में जेल जा चुके थे। पूरा परिवार गांव में रहता था। अध्ययन की दृष्टि से मैं भीलवाड़ा रहता था। पिताजी ने 13 नवम्बर को मुझे अपने पास बैठाकर समझाया कि वे कल सत्यागृह करके जेल जा रहे है तथा कब लौटेगे यह निश्चित नहीं है। परिवार को एवं खेती को सम्भालने की मेरी अनुपस्थिति में समस्त जिम्मेदारी तुम्हारी है मैने भी हां भरी। पिताजी ने उस रात भीलवाड़ा में अपने साथियो के साथ अज्ञात स्थान पर रात्री विश्राम किया। संघ की योजनानुसार मैं एवं मेरे साथी श्री राजेन्द्र कुमार सोलंकी दिनांक 13.11.1975 रात्री को एक बजे बाद शहर के मुख्य बाजार में आपात्काल विरोधी पेम्पलेट दुकानों में डाल रहे थे तथा दीवारो पर नारे लिख रहे थे सुबह 4 बजे करीब हम सरकारी दरवाजे के पास यह नारा लिख रहे थे- प्रजातंत्र की भक्षक - इन्द्रा गांधी यह पूरा होता उससे पूर्व 3 सी.आई.डी. के व्यक्ति चुपके से हमारे पास आये मै तो भाग लिया लेकिन श्री सोलंकी पकडे गये। मेरे मन में अजीब उलझन थी किशोर मन था किसी प्रकार का निर्णय नहीं ले पा रहा था ऐसा लग रहा था कि पुलिस मेरे पीछे है बिना पीछे देखे तेज गति से गलियो के सहारे दौड़ता ही चला गया। उजाला होने पर घर पहुँचा तो मोहल्ले में एवं पडौसियों ने पूछा सुबह-सुबह कहां गये थे मैने बताया प्रातः काल के भ्रमण पर। कॉलेज का समय प्रातः काल का था अतः तैयार होकर 07:30 बजे कॉलेज पहुंच गया लेकिन सब कुछ असामान्य लग रहा था। किसी से सुबह का घटनाक्रम साझा नहीं कर सकता था। 11:30 बजे कॉलेज से छुटने के बाद घर पहुंचा तो पडौसियो ने बताया कि मुझे पुलिस ढूढने आई है। खाना स्वयं ही बनाना होता था। पुलिस के डर से वापिस घर से बाहर निकल गया। आन्दोलन का पहला दिन था अतः अधिकांश अधिकारी एवं साथी भूमिगत थे। उसी दिन गिरफ्तारी हेतु संघ के नेतृत्व में दूसरा जत्था जाने वाला था उहा पोह की स्थिति में मैने यह निर्णय लिया कि मै भी दूसरे जत्थे में शामिल हो जाऊंगा तथा मैने वही किया। श्री सोलंकी को पकड़ने के बाद पुलिस ने उनके साथ मारपीट की तथा डराया तो उन्होने मेरा नाम एवं घर का पता बता दिया था। अन्य सत्याग्रहियो के साथ मुझे भी गिरफ्तार किया तथा पुलिस लाईन ले गये मुझे देखकर दो पुलिस वालो ने आपस में वार्ता की यह वही लड़का है जिसे हम सुबह से ढूढ रहे है तथा जो सुबह भाग गया था। मुझे अन्य साथियों से अलग कर श्री राजेन्द्र सोलंकी के पास ले गये। चार बजे करीब दोनो को कोर्ट में प्रस्तुत किया वकील श्री उमराव सिंह भंडारी ने वकालतनामे पर हस्ताक्षर कराये न्यायाधीश ने पूछा Any Bell श्री भंडारी जी ने कहा No Bell हम न्यायालय की भाषा समझते नहीं थे अतः मैने सोचा छोड रहे है लेकिन पुलिस वालो ने हम दोनो को जीप में बिठाया तथा जेल ले गये। तलाशी लेकर हमे एक बडी बैरक में छोड़ दिया जेल में सबसे पहले पहुंचने वाले मैं और मेरे साथी श्री सोलंकी थे। जेल का दृश्य फिल्मों में देखा था हम दोनो ने बात की अब पुराने कैदियों को मालिश करनी पडेगी श्री सोलंकी ने बताया कि पुलिस की मारपीट एवं डर के कारण उन्होने मेरा नाम तथा घर का पता बताया। रात्री करीब 08:00 बजे जेल में अचानक जोर से भारत माता की जय का उद्घोष सुनाई दिया आवाज सुनते ही मैं पहचान गया की नारा बुलन्द करने की आवाज पिताजी की थी। मुझे घर पर लाला के नाम से जाना जाता है बचपन से ही कद्दू की सब्जी नहीं खाता था लेकिन जेल में पहले ही दिन कद्दू की फीकी-फीकी सब्जी आई सुबह से भूखा होने से पानी के साथ जैसे तैसे एक रोटी खा सका। मेरे पकडे जाने एवं जेल पहुंचने की सूचना पिताजी को पुलिस द्वारा आपस में वायरलेस पर बातचीत होने से जानकारी में आ गया था। बैरक में आते ही पिताजी ने आवाज दी लाला तू यहां मेरे से पहले आ गया। तेरे आने का था तो मुझे कल क्यो नहीं बताया मैं निरूत्तर था दुबारा मेरी कुशलक्षेम पूछने पर मैने कहा यहां तो कद्दू की सब्जी है तो उन्होने मेरा हौसला बढ़ाते हुये कहां यहां ऐसा ही खाना मिलेगा। दूध दही तो घर पर है। परिस्थितियों से लड़ो। आजादी के दीवानो को तो यह भी नहीं मिलता था। दूसरे दिन पिताजी को पूरा घटनाक्रम बताया तो उन्होने सब के सामने मेरी पीठ थप थपाई और कहां कि हर विपरीत परिस्थिति में अपने निर्णय पर अडिग रहना। अगले दिन पूरे शहर में समाचार पहुंच गया कि पिता और पुत्र दोनो जेल गये है। 16 नवम्बर रविवार को जेल में मिलने का दिन था अतः वकील श्री भंडारी जी उनके कुछ अन्य वकीलो के साथ आये तथा पिताजी से कहा कि बच्चे की जमानत की अर्जी लगा दे क्या ? क्योकि आप दोनो की अनुपस्थिति में परिवार को कौन सम्भालेगा पिताजी के अन्य साथियों एवं संघ कार्यकर्ताओ ने भी मेरे जमानत जाने पर दबाव डाला लेकिन उन्हो स्पष्ट मना कर दिया जब ज्यादा ही दबाव डाला तो उन्होने मेरे पर छोड दिया। जब उन्होने मुझे समझाया तो मेरे कानो में पिताजी कहे ये वाक्य ??अपने निर्णय पर हर परिस्थितियों में अडिग रहना?? गूंज उठे तथा मैने भी मना कर दिया। शाम को जब पिताजी से मैने अकेले में पूछा कि उन्होने जमानत का निर्णय मेरे पर क्यो छोडा तो उन्होने मुझे कहा कि मुझे पूरा भरोसा था कि तुम हा नहीं करोगे। पिताजी ओर मै साथ-साथ रहे मै 20.03.1976 को छूट गया लेकिन पिताजी उसके बाद भी लम्बे समय तक जेल में रहे। आज भी पिताजी के स्वर ??अपने निर्णय पर अडिग रहना?? कानो में गूंजते है तो जोश का नया संचार पैदा हो जाता है। इन विपरित परिस्थितियों में भी मां ने धैर्य नहीं खोया तथा पशुपालन तथा सिलाई करके घर का खर्च चलाया। हमसे मिलने महीन में एक बार आती थी तो मेरा हौसला बढ़ाती थी। उस समय में अधिकांश रिश्तेदारो ने किनारा कर लिया था। हमारा परिवार उनके लिये अछूत हो गया था तथा उन्हे डर था कि इस परिवार से सम्पर्क रखेगे तो उन्हे भी पुलिस द्वारा पकड लिया जायेगा। माँ ने कैसे परिवार संभाला होगा यह सोचकर आज भी शरीर में सिहरन हो जाती है। दोनो इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनका आशीर्वाद हमारे साथ है।

स्मृतियाँ:

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