( आपातकाल
के
राजनैतिक
बंदियों का
अखिल
भारतीय
संगठन )
aapatkal.com
लोकतंत्र सेनानी
Name
:
KOMAL CHHEDA
नाम
:
N/A श्री कोमल छेड़ा
N/A
श्री रवजी भाई छेड़ा
लिंग
:
पुरूष
राज्य
:
Madhya Pradesh
जिला
:
Narsimhapur
जन्म
28-10-1953
आवेदन
दिनांक :
24-08-2016
ई मेल पता:
komalrchheda@yahoo.co.in
मोबाइल
:
9702440849
अन्य
नम्बर:
022-28926247
आवेदक
का नाम
:
स्वयं
डाक
का पता:
105,न्यू कृष्णा निवास, रोशन नगर, बोरीवली, मुंबई (पश्चिम) 400092
निरुद्ध
जेल का नाम
नरसिंगपुर जेल
जेल
अवधि
10 अक्टूबर 1975 से 07 मार्च 1977
गिरफ्तारी
अंतर्गत
MISA
वर्तमान
ज़िम्मेदारी
राष्ट्रीय सचिव, लोकतंत्र सेनानी संघ, ZRUCC, पश्चिमी रेल्वे, कच्छ तथा मुंबई की अनेक संस्थाओं में पदाधिकारी
जीवित या स्वर्गीय
living
सामाजिक दायित्व
उपाध्यक्ष, करेली नगर पालिका
संस्मरण:
*आप माने न माने, मैं अभी तक पेरोल मे हूँ* *भूमिका* 26 जून आपातकाल की घोषणा, सभी शीर्ष नेताओं की गिरफ्तारी का समाचार, साथियों से इसके विरोध में आंदोलन करने की चर्चा, दूसरे दिन श्री कैलाश सोनी, महेश चौरसिया की मीसा में गिरफ्तारी, मुझ पर वारंट । ऐसी स्थिति के बावजूद उसी रात्री में पूरे नगर में घूम कर आपातकाल विरोधी नारे दीवारों पर लिखने के साथ साथ हस्तलिखित नारों के पोस्टर चिपकाए । प्रातः आपातकाल के विरोथ में जन जागरण हेतु जुलूस का आयोजन । *आपातकाल के दो दिन बाद आंदोलन* प्रातः नौ बजे हम लगभग चालिस तरुणों ने नगर के मुख्य चौक से नारे लगाते हुए आंदोलन का प्रारंभ किया । लगभग 100 मीटर आगे बढ़ते ही पुलिस जुलूस पर टूट पड़ी । जो हाथ लगा, उसे पकड़ कर थाने ले गई । ध्यान रहे, यह कोई संघ नियोजित सत्याग्रह नहीं बल्कि एक स्वतःस्फूर्त विरोध प्रदर्शन था । मैं पुलिस के हाथ से छूटकर भागा । मेरे पीछे पुलिस पड़ी थी । मैं गलियों में भागते हुए एक मोड़ पर पुलिस को चकमा देकर एक संघ कार्यकर्ता के घर में घुस गया । उनके घर के पिछवाड़े से निकल कर दूसरे घरों के ऊपर से निकलता दूर एक घरेलू गौशाला में छिप गया । शाम ढलते ही वहाँ से निकल कर नगर के बाहर से होते हुए दूसरे छोर पर नगर के एक पूर्व नगरपति श्री शुभकरण लुनावत के घर में छिपा । *पुलिस की पकड़ से बाहर* मैं जानता था, पुलिस मुझे पकडधने के लिए कुछ भी खरेगी । तब मैं चार शाखाएँ चलाता था, छात्र नेता था, ऊपर से नगर पालिका का उपाध्यक्ष भी था । पुलिस ने सब दूर छान मारा, पर मैं उसके हाथ नहीं लगा । मेरे साथ जुलूस में चल रहे छोटे स्वयंसेवकों के समेत लगभग 20 कार्यकर्ताओं को पुलिस ने मीसा में डाल दिया था । इस आंदोलन के कारण पुलिस की भारी किरकिरी हुई । इसलिए कुछ नगर पालिका सदस्य और मेरे अन्य कई साथी, जो जुलूस में नहीं थे, उन्हें भी घरों में घुसकर गिरफ्तार कर लिया गया । ऐसे बहुत से लोग जो डरकर घर से निकलते नहीं थे, उन्हें भी गिरफ्तार होना पड़ा । बाद में सुना, उन लोगों ने व उनके परिवार वालों ने तब मुझे बहुत गालियाँ दीं, मुझे बहुत कोसा था । मैं उसी रात 12 बजे के बाद नगर के बाहरी क्षेत्रों के खेतों से निकलता हुआ स्टेशन के एक छोर से चलती ट्रेन में चढ़कर नगर से बाहर निकल गया । घर से बाहर, पुलिस से बचकर मुझे आपातकाल के विरोध में कुछ करना था । अपने नगर में भूमिगत रहकर यह करना मुश्किल था । मैं ट्रेन में करेली से पिपरिया, फिर भोपाल, जबलपुर, मुंबई घूमता रहा । *भूमिगत कार्य में सक्रियता* तब तो अधिकतर नेता जेलों में थे । जो बाहर थे वे गुप्त रुप से भेष बदल कर जन जागरण के काम में लगे थे । उनमें से मा. प्यारेलाल खंडेलवाल, मा. केलकर आदि से मेरा संपर्क हुआ और मैं उनका सहभागी बन गया । आपातकाल विरोधी साइक्लोस्टाइल किए गए विचारोत्तेजक समाचार लोगों तक पहुँचाने का मुझे अच्छा अनुभव प्राप्त हो गया । मैं इस काम में जबलपुर, भोपाल से बीच बीच में करेली आता था और उसी दिन वापस चला जाता था । *अपने हुए पराये* लोग मुझसे मिलने से डरते थे । जिले से बाहर भी कोई जान पहचान वाला मिल जाता दूर से रास्ता बदल लेता था । इधर करीबी रिश्तेदार भी मेरी माता जी से मिलने से कतराते थे । *आत्म समर्पण और जेल यात्रा* लगभग ढाई मास गुप्त वास को हुआ, तब समाचार मिला कि घर पर नोटिस लगा है